भगवद गीता (Bhagavad Gita), विष्णु सहस्त्तनाम और ज्योतिष
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भगवद गीता महाभारत का एक भाग है (भीष्म पर्व, अध्याय 23 से 40 तक)। इसमें कुल १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। यह भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में हुआ संवाद है।
विष्णु सहस्रनाम (Vishnu Sahasranama)
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विष्णु सहस्रनाम का अर्थ है “विष्णु भगवान के 1000 नाम”। यह भी महाभारत के अनुशासन पर्व का हिस्सा है (अध्याय 149)। यह भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर को बताया गया था।
प्रमुख उद्देश्य:
भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों का जाप करने से समस्त पापों से मुक्ति, सुख-शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।
प्रारंभिक श्लोक:
शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये॥
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम्।
पराशरात्मजं वन्दे शुक्तातं तपोनिधिम्॥
सहस्रनाम्नां तत्तेयं शृणु पापभयापहम्।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
भगवद गीता का महत्त्व
भगवद गीता और विष्णु सहस्रनाम दोनों ही हिन्दू धर्म के दो अमूल्य रत्न हैं। इनका अध्ययन, श्रवण और स्मरण करने से न केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि मानसिक शांति, पापों से मुक्ति और मोक्ष की ओर भी मार्ग प्रशस्त होता है।
यहाँ दोनों का महत्त्व (Mahatva) विस्तार से दिया गया है:
गीता एक ऐसा जीवन-दर्शन है जो हर परिस्थिति में कैसे जीना है, उसका मार्ग बताता है — चाहे वह संकट हो, मोह हो, भय हो या धर्मसंकट।
गीता, विष्णु सहस्त्तनाम के लाभ