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भारत वेदिक शिक्षा को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, जो पिछले 5000 वर्षों से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है। हमारे यहाँ 20वीं सदी से पहले भी महान प्रबंधक और वैज्ञानिक हुए हैं। भगवद गीता, रामायण, महाभारत, पुराण और उपनिषदों जैसे शास्त्रों में प्रबंधन रणनीतियाँ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण उपलब्ध हैं।
हमारे पास वेदिक साहित्य की एक समृद्ध धरोहर है – ज्योतिष, दर्शन, वेदांत, ब्रह्मांड विज्ञान, ग्रह-नक्षत्र, नाभिकीय सिद्धांत, चिकित्सा विज्ञान, शल्यचिकित्सा, ऊर्जा के सिद्धांत, पर्यावरण प्रबंधन और अनगिनत खोजें तथा आविष्कार इस धरोहर का हिस्सा हैं।
क्या हमें इन्हें नज़रअंदाज़ करना चाहिए? बिल्कुल नहीं।
हमें इनके बारे में जानना चाहिए और इस समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
महर्षि पराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट यही कार्य 2013 से कर रहा है।
गुरुकुल का इतिहास
ज्योतिषाचार्य राकेश पाण्डेय द्वारा 2 अक्टूबर 2013 को स्थापित इस गुरुकुल ने अब तक लंबा सफर तय किया है। प्रारम्भ में यहाँ ‘उपदेशक’ और ‘आचार्य’ प्रशिक्षित किए गए जो आज भारतीय संस्कृति का संदेश विश्वभर में पहुँचा रहे हैं।
वर्ष 2007 में इस गुरुकुल को नया स्वरूप देकर "बाल-गुरुकुल" नाम दिया गया।
यहाँ योग्य आचार्यों, अध्यापकों और प्रशासनिक कर्मचारियों की एक सक्षम टीम है।
वर्तमान में लगभग 200 विद्यार्थी वाराणसी के संस्कृत विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम के अनुसार यहाँ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
महर्षि पराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के लक्ष्य एवं उपलब्धियाँ
प्राचीन और आधुनिक शिक्षा का अनोखा केन्द्र
उपलब्धियाँ
आधुनिक युग में गुरुकुल क्यों ज़रूरी हैं?
गतिविधियाँ