ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
भावार्थ:
ॐ – परमात्मा का पवित्र नाम
त्र्यंबकं यजामहे – हम तीन नेत्रों वाले भगवान शिव की उपासना करते हैं
सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् – जो पूरे संसार को जीवन व पोषण प्रदान करते हैं
उर्वारुकमिव बन्धनान् – जैसे पककर बेल फल (ककड़ी) डंठल से स्वतः अलग हो जाता है
मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात् – वैसे ही हम मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाएं, पर अमरत्व से नहीं